ॐ जय सद्गुरु दाताः ॐ जय सद्गुरु दाता ।
त्रिगुण रहित निर्वाणी जग में विख्याता ॥ ॐ जय ॥
चेतन रूप निरंजन आप पिता-माता ।
भक्तन के हितकारी सदा सुखी नाता ॥ ॐ जय ।।
आदि सनातन देवा अगम ज्ञान – ज्ञाता ।
दुःख – हरता सुख-कर्ता सत्य रूप भाता ॥ ॐ जय ॥
मन के रोग मिटावन पावन पथ जाता ।
शील क्षमा गुण-आगर शरणागत त्राता ॥ ॐ जय ॥
शाँति रूप शरीरा नाशक भव-पीरा ।
सुख सागर के नीरा भक्तन के नाता ॥ ॐ जय ।।
आदि पुरुष अविनाशी संतन घट-वासी ।
भव-सागर दुःख नाशी सतसुख के दाता ॥ ॐ जय ।।
अगम अगोचर स्वामी आप अन्तर्यामी ।
अमर लोक के धामी संतन मन भाता ॥ ॐ जय ॥
सत्य रूप भय हारी कामादिक मारी।
भक्तन के अघ-हारी पार नहीं पाता । ॐ जय ॥
श्री अमृतनाथजी दयाला हरिए भव-जाला ।
शंकर कर प्रतिपाला चरणन बलि जाता ॥ ॐ जय ॥