यज्ञ महिमा

॥ ॐ शिव गोरखनाथाय नमः ॥
यज्ञ महिमा:-
|| श्री अमृतनाथायः नमः ||
ऋषियों मुनियों द्वारा जगत को दी गयी ऐसी महत्वपूर्ण देन है जिसे सर्वाधिक फलदायी एवं समस्त पर्यावरण के ठीक बने रहने का आधार माना जाता है | ऋषियों ने (अयम् यज्ञो विश्वस्य भुवअस्य नाभिः) कहकर यज्ञ को संसार की सृष्टि का आधार बिंदु कहा है।
श्रीकृष्ण जी ने कहा है
“सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेव वोर्डासि तष्ट कामधुकः ॥
अर्थात् प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उसने कहा कि तुम लोग इस यज्ञ कर्म के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होआ और यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोरा प्रदान हो । संस्कृत मे यज्ञ धातु से बना यज्ञ शब्द देव पूजन दान एवं दुनिया को समर्थ सशक्त बनाने वाली सत्ताओं के संगति करण के अर्थ में परिभाषित होता है। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि यज्ञः कर्मसमुद्भवः ।।
महर्षि दयानंद ने यज्ञ के बारे में कहा है। घर में किलोभर जीरा पड़ा हुआ है। किन्तु उसकी सुंगध किसी को भी नही आ रही है । परन्तु घर को गृहिणी उसमें से दो ग्राम जीरा लेकर अग्नि मे खूब तपे घी में डालकर जब दालों में छोंक लगा देती है। तो न केवल वही एक घर प्रत्युक्त आस पास के सभी घर उसको सुगंध से सुगंधिमय हो जाते है।
राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करके चार पुत्र पाए थे। इंद्र ने स्वयं भी यज्ञों के द्वारा सब कुछ पाया है।
आज के इस समय में यज्ञ द्वारा सब कुछ पाया जा सकता है।
योगी श्री तीर्थनाथ
योगी श्री कृपानाथ
योगी श्री गुलाबनाथ

भारतीय संस्कृति में यज्ञ को महिमा:-
ऋषियों मुनियों द्वारा जगत को दी गयी ऐसी महत्वपूर्ण देन है जिसे सर्वाधिक फलदायी एवं समस्त पर्यावरण के ठीक बने रहने का आधार माना जाता है। ऋषियों ने (अयम् यज्ञो विश्वस्य भुवअस्य नाभिः) कहकर यज्ञ को संसार की सृष्टि का आधार बिंदु कहा है।
श्रीकृष्ण जी ने कहा है
“सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाच प्रजापतिः। अनेन प्रसविष्यध्वमेव वोडसि तष्ट कामधुकः ॥
अर्थात् प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उसने कहा कि लोग इस यज्ञ कर्म के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होआ और यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोरा प्रदान संस्कृत मे यज्ञ धातु से बना यज्ञ शब्द देव पूजन दान एवं दुनिया को समर्थ सशक्त बना वाली सत्ताओं के संगति करण के अर्थ में परिभाषित होता है।
महर्षि दयानंद ने यज्ञ के बारे में कहा है। घर में किलोभर जीरा पड़ा हुआ है। किन्तु उसकी सुंगध किसी को भी नही आ रही है। परन्तु घर को गृहिणी उसमें से दो ग्राम जीरा लेकर अग्नि मे खूब तपे घी में डालकर जब दालों में छोंक लगा देती है। तो न केवल वही एक घर प्रत्युक्त आस पास के सभी घर उसको सुगंध से सुगंधिमय हो जाते है।
राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करके चार पुत्र पाए थे। इंद्र ने स्वयं भी यज्ञों के द्वारा सब कुछ पाया है।
॥ यज्ञ महिमा |
यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्जवल कीजिए । छोड़ देने छल कपट को, मानसिक बल दीजिए | वेद की बोलें ऋचाएँ, सत्य को धारण करें । हर्ष में हो मग्र सारे, शोक सागर से तरें।
अखमेधादिक रचाएँ, यज्ञ पर उपकार को । धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दे संसार को ॥ नित्य, ऋद्धा भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहे। रोग- पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहें ।
कामना मिट जाए मन से, पाप अत्याचार की भावनाएँ शुद्ध होवें, यज्ञ से नर-नारी की ॥ लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए। वायु-जल सर्वत्र हो, शुभ गन्ध को धारण किए || स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो । इदम् न मम् का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो || हाथ जोड़ झुकाए मस्तक, वनदना हम कर रहे । नाथ करूणा रूप करूणा, आपकी सब पर रहे।
यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्जवल कीजिए । छोड़ देवे छल कपट को, मानसिक बल दीजिए ।