॥ श्री ॥आरती॥ श्री ॥

कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्  सदा वसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी जय शिव ओंकारा हर जय शिव ओंकारा । ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्धाङ्गी धारा ॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजै । हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजै ॥ दो भुज चार चतुर्भुज दश भुज ते सोहे । तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ।। अक्षमाला बनमाला रुंडमाला […]
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शिवताण्डव स्तोत्रम

शिवताण्डव स्तोत्रम – जटाकटाहसम्भ्रमभ्रन्निनिलिम्पनिर्झरी- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ 1 ॥ भाषार्थ-ताण्डव नृत्य के समय जटारूपी कूप में वेग से घूमती हुई भागीरथी की चंचल तरङ्गरूपी लताओं से शोभायमान और धक्क धक्क शब्द सहित जलने वाली है अग्नि जिसमें ऐसे ललाटवाले तथा द्वितीया के चन्द्रमारूपी आभूषण को धारण करने वाले श्रीमहादेवजी […]
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अथ श्री पुष्पदन्त उवाच महिम्न स्रोत्रम्

॥ अथ श्री पुष्पदन्त उवाच महिम्न स्रोत्रम् ॥ महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः अथावाच्यः शर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन् ममाप्येष स्त्रोत्रे हर निरपवादः परिकरः ॥ 1 ॥ अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयो रतद्वयावृत्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि । स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्यः विषयः पदेत्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः ।। 2 ।। […]
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शिव प्रार्थना

नमामि देवं वरदं वरेण्यं नमामि देवं च सदा सनातनम् ॥ नमामि देवाधिपमीश्वरं हरं नमामि शम्भुं जगदेकबन्धुम् ॥ नमामि विश्वेश्वर विश्वरूपम् सनातनं ब्रह्न निजात्मरुपम् ॥ नमामि सर्वं निजभावगम्यं वरं वरेण्यं वरदं नतोऽस्मि || सबको वर देने वाले सर्वश्रेष्ठ देव भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ। सनातन देवता शिव को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। देवताओं […]
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शिव रुद्राष्ठक

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ॥  निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥ हे मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात् मायादिरहित), (मायिक) गुणों से रहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्ररूप […]
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स्मृतियों में योग-

मनुस्मृति में-आफर में फूके जाते धातुओं के मल जैसे दग्ध हो जाते हैं, वैसे ही प्राणायाम से इन्द्रियों के दोष दग्ध होता है।1। उच्चावच (छोटे-बड़े) जीवों में अयोगी लोगों के लिये दुर्ज्ञेय इस अन्तरात्मा की गति को योगी ध्यानयोग से देखता है!।2। इत्यादि बहुत है। याज्ञवल्क्यस्मृति में-यज्ञ आचार दम अहिंसा दान स्वाध्याय आदि कर्मों में […]
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उपनिषदों में योग

द्विजसेवितशाखस्य श्रुतिकल्पतरोः फलम् ॥ शमनं भवतापस्य योगं भजत सत्तमाः ! (विवेकमार्तण्डे, गोरक्षः) योग-तत्वोपनिषद् में-ॐ योग तत्व का प्रवचन करेंगे-योगियों के हित की कामना से।  उस योग-तत्व को सुनकर और पढ़कर सब पापों से मुक्त होता है । 1 । विष्णु नामक महायोगी महामाया वाला महान् तपस्वी है,  तत्व (योग) मार्ग में पुरुषोत्तम दीपक जैसा दिखाई […]
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निर्गुण लीला

सतनमो आदेश! गुरु जी को आदेश! ॐ गुरु जी!  निर्गुण दाता हरता करता, सब जग विनशे आप न मरता।  सदा सर्वदा अविचल होय-लेना इक न देना दोय-ऐसा मता सन्त का होय ॥ 1 ॥  निर्गुण सागर अपरम्पार, जाके तरंग बसे सकल संसार ।  उत्पत्ति प्रलय वाही में होय-लेना इक न देना दोय पूर्ववत्. ॥12 ॥  […]
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अथ ज्ञान गोदड़ी प्रारम्भः

अथ ज्ञान गोदड़ी प्रारम्भः सत नमो आदेश गुरुजी को आदेश ॥ ॐ गुरुजी || ॥ चौपाई ॥ नाथ कहे दोउ कर जोरी, यह संशय मेटो प्रभु मोरी।  काया गोदड़ी का विस्तारा, तां से हो जीवन निस्तारा।  आदि पुरुष इच्छा उपजाई, इच्छा सखत निरंजन मांही।  इच्छा ब्रह्मा विष्णु महेशा, इच्छा शारद गौरी गणेशा ।  इच्छा से […]
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॥ नवनाथ – स्वरूप ॥

आदिनाथ सदाशिव हैं जिनका आकाश रूप, उदयनाथ पार्वती पृथ्वी रूप जानिये । सत्यनाथ ब्रह्माजी जिनका जल स्वरूप, विष्णु सन्तोषनाथ तेजरूप मानिये । अचल हैं अचम्भेनाथ जिनका है शेष रूप, गजबेली गजकन्थड़नाथ हस्तिरूप जानिये । ज्ञानपारखी जो सिद्ध है वो चौरंङ्गीनाथ, अठारह भार वनस्पति चन्द्ररूप मानिये । दादा श्रीमत्स्येन्द्रनाथ जिनका है माया रूप, गुरु श्रीगोरक्षनाथ ज्योतिरूप […]
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