शिव गोरक्ष गुण गाइये, नित उठ मनुज प्रभात ।
गोरां देवी पूजिये, ऋद्धि सिद्ध की मात ॥ 1 ॥
शिव गोरक्ष के सिमरियां, सब दुख होवत दूर।
दूध पूत घर लक्ष्मी, सदा रहे भरपूर ॥ 2 ॥
नाथ सहाई आखिरी, होंवे आपै आप ।
कष्ट कलेश मिटाय दे, और मिटावें पाप ॥ 3 ॥
शिव गोरक्ष के नाम से, पापी तरें अनेक ।
मैं प्राणी भी तां तरूँ, जे शिव गोरक्ष टेक ॥ 4 ॥
शिव गोरक्ष का रंग, हर में रह्यो समाय ।
पाँच तत्त का रंग, आपे ही वण जाय 5
शिव गोरक्ष को ध्याइये, सब दुःख होवन नाश।
शिव गोरक्ष विन वन्द्या! किस काम तेरा श्वास ॥6॥
नाथ मिटादें जीवन-मरण, मैं प्राणी नाथ की शरण ।
मैं सेवक गोरक्ष का दास, हरदम रहे नाथ की आस ॥7॥
शिव गोरक्ष बिन वन्द्या! सूना है संसार ।
शिव गोरक्ष हिय समरिये, बेड़ा होवे पार ॥8॥
महिमा शिव गोरक्षनाथ की, मुझसे कथी न जाय।
वेद पुराण पुकारते, कीर्ति रहे बढ़ाय ॥ 9 ॥
शिव गोरक्ष हृदय धरो, जे चाहो सुख चैन।
शिव गोरक्ष के नाम में, मगन रहो दिन रैन ॥ 10 ॥
शिव गोरक्ष के चरण में, नित उठ धरो ध्यान।
शिव गोरक्ष ही वन्द्या! सदा करें कल्याण ॥ 11 ॥
शिव गोरक्ष सम और ना, हिरदय सोच-विचार ।
वेद पुराण पुकारते, शिव गोरक्ष नाम चतार ॥ 12 ॥
शिव गोरक्ष के भजन से, पाप न लागे अंग ।
सुख सम्पत्ति सदा रहे, चढ़त सवाया रंग | 13 ||
शिव गोरक्ष के नाम से, अंधकार मिट जाय।
शिव गोरक्ष को ध्याइये, मनवांछित फल पाय ॥ 14 ॥
शिव गोरक्ष के भजन बिन, पाँचों होवे ख्वार ।
काम क्रोध लोभ मोह, ओर अहंकार ।।15।।
सभी देवी देवते, गोरक्ष की तस्वीर ।
भेद-भाव का त्याग कर, कञ्चन करो शरीर ॥16 ॥
भक्तों के दुःख हरण को, आवें नाथ तद्सार ।
जो नर उनको सेवते, धन-धन हैं लख बार ॥ 17 ॥
क्या राजा क्या बादशाह, क्या वजीर क्या फकीर ।
हर का नाम चतारते, क्या गरीब क्या अमीर ॥18॥
इस जग में कोटा कोट हैं, नाना रूप के नाम ।
कोई शिव कृष्ण पुकारता, कोई पुकारे राम ॥ 19 ॥
कोई ब्रह्मा विस्नु को, नित उठ जोड़े हाथ।
कोई भवानी शारदा, सर्व जगत की मात ॥ 20 ॥
सेवक का यह धर्म है, नित उठ करे स्नान ।
हाथ जोड़ शिर नाय के, हृदय धरे ध्यान ॥ 21 ॥
सनातन धर्म में रहें हिन्दू, शिव गोरक्ष का दास ।
इयो संझिये नाथजी, हरदम मेरे पास ॥ 22 ॥
सेवा सन्त गौ ब्रह्म की, हिन्दू की कुल रीत ।
दया धर्म मन में रहे, करे नाथ संग प्रीत ॥ 23 ॥
काया का यह धर्म है, करना सत उपकार ।
बिना सत उपकार के! नहीं तेरा आधार ॥24 ॥
शिव गोरक्ष को ना भजे, सो मूरख मतिमन्द ।
शिव गोरक्ष के सिमरियां, सदा रहे आनन्द ॥25॥
शिव गोरक्ष के नाम को, जो कोई जपत हमेश ।
रोग न लागे अंग में, मिटे पाप क्लेश || 26 |
गीता गंगा गायत्री, गोरक्षबोध पुराण ।
शिव गोरक्ष का रंग, निश्चय करके जाण ॥27॥
निराकार निर्भय शिव, इक सौ अठ अवतार ।
पूरण ब्रह्म परमात्मा, जिसका सकल पसार ॥28॥
महिमा गोरक्ष नाम की, पढ़े जो प्रातः काल ।
सती पीर कायानाथजी, उस पर सदा दयाल ॥ 29 ॥
अटल शिव गोरक्षनाथ हैं, और नाम सब नास ।
जड़ चेतन जिया- जून को करे काल नित ग्रास ॥30॥
ऐ! प्राणी! तू छोड़ दे, और सभी की आस ।
जति गुरु गोरक्षनाथ का, सबके घट में वास ॥31॥
बोलो! हर ! श्रीनाथ! हर श्रीनाथ!
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श्री भैरवो रुद्र महेश्वरो यो महाकाल अधीश्वरोज्थ ।
यो जीव नाथोऽत्र विराजमानः श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये ॥ 1 ॥
पद्मासना सीत मपूर्वरुपं महेन्द्र चर्मोपरि शोभमानम् ।
गदाऽब्ज पाशन्वित-चक्र चिन्हम् श्री भैरवं पूर्ववत् ॥ 2 ॥
यो रक्त-गौरश्च चतुर्भुजश्च पुराः स्थितोद्भासित पानपात्रः ।
भुजंग भूयोऽमित विक्रमोयः श्री भैरवं पूर्ववत् ॥3 ॥
रुद्राक्षमाला-कलिकाङ्गरूपं त्रिपुण्ड युक्तं शशिभाल शुभ्रम् ।
जटाधरं श्वानवरं महान्तं श्री भैरवं पूर्ववत् ॥ 4 ॥
योदेव देवोऽस्ति परः पवित्रः भुक्तिञ्च मुक्तिञ्च ददादि नित्यम् ।
योऽनन्त रुपः सुखदो जनानां श्री भैरवं पूर्ववत् ॥15 ॥
यो बिन्दुनाथोऽखिल नादनाथः श्री भैरवी चक्रप-नागनाथः।
महाद्भूतो भूतपतिः परेशं श्री भैरवं पूर्ववत् ॥ 6 ॥
यो योगिनो ध्यान परः नितान्तं स्वान्तः स्थमीशं जगदीश्वरं वै ।
पश्यन्ति पारं भव सागरस्थ श्री भैरवं पूर्ववत् ॥ 7 ॥
धर्मध्वजं शङ्कररुप मेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम् ।
द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं पूर्वतम् ॥8 ॥
भैरवाष्टक मेतद् यः श्रद्धा-भक्ति-समवितः ।
सायं प्रातः पठेन्नित्यं स यशस्वी सुखी भवेत् ॥ १ ॥