बाल योगी भये रूप लिये तब, आदिनाथ लियो अवतारो ।
ताहि समय सुख भयो सिद्धों को, तब शिव गोरक्ष नाम उचारो॥
भेष भगवान ने करी विनती तब अनुपान शिला पे ज्ञान विचारो ।
को नहिं जानत है जग में, शिव गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥ 1 ॥
सत्य युग में भये कामधेनु गऊ तब जति गोरक्षनाथ को भयो प्रचारो ।
आदिनाथ वरदान दियो तब, गौतम ऋषि से शब्द उचारो॥
त्र्यम्बक-क्षेत्र में स्थान कियो तब, गोरक्ष गुफा का नाम उचारो।
को नहिं जानत है जग में, जती गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥ 2 ॥
सत्यवादी भये हरिश्चन्द्र शिष्य तब, शून्य शिखर से भयो जयकारो ।
गोदावरी का क्षेत्र पे प्रभु ने, हर हर गंगा शब्द उचारो ।।
यति शिव गोरक्ष जाप जपे, शिवयोगी भये परम सुखारो ।
को नहिं जानत है जग में, जति शिव गोरक्ष नाथ है नाम तुमारो ॥3 ॥
आदि शक्ति से संवाद भयो जब, माया मत्स्येन्द्रनाथ भयो अवतारो ।
ताहि समय प्रभु नाथ मत्स्येन्द्र, सिंहलद्वीप को जाय सुधारो ॥
राज्य योग में ब्रह्म लगायो तब, नाद बिन्द को भयो प्रचारो ।
को नहिं जानत है जग में यति, गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥4॥
आन ज्वाला जी कीन तपस्या, तब ज्वाला देवी ने शब्द उचारो।
ले जति गोरक्षनाथ को नाम तब, गोरक्षडिब्बी को नाम पुकारो ॥
शिष्य भया जब मोरध्वज राजा, तब गोरक्षपुर में जाये सिधारो ।
को नहिं जानत है जग में यति, गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥5॥
ज्ञान दियो जब नव नाथों को, त्रेता युग को भयो प्रचारो।
योग लियो रामचन्द्र जी ने जब, शिव शिव गोरक्ष नाम उचारो।।
नाथ जी ने वरदान दिया तब, बद्रीनाथ जी नाम पुकारो।
को नहिं जानत है जग में यति, शिव गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥6॥
गोरक्ष मढ़ी पे तपश्चर्या कीन्हीं तब, द्वापर युग को भयो प्रचारो।
कृष्ण जी को उपदेश दियो तब, ऋषि मुनि भये परम सुखारो ॥
पाल भूपाल के पालनते शिव, माल हिमालय भयो उजियारो।
को नहिं जानत है जग में, यति गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥ 7 ॥
ऋषि मुनियों से संवाद भयो जब, युग कलियुगे को भयो प्रचारो।
कार्य में सहाय किया जब जब, राजा भर्तृहरि को दुःख निवारो ॥
ले योग शिष्य भया जब राजा, रानी पिङ्गला को संकट टारो ।
को नहिं जानत है जग में, यति गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥8 ॥ ||
मैनावती रानी ने स्तुति की जब, कुवां पे जाके शब्द उचारो।
राजा गोपीचन्द्र शिष्य भयो तब, नाथ जलन्धर के सङ्कट टारो |
नवनाथ चौरासी सिद्धों में, भगत पूरन भयो परम सुखारो ।
को नहिं जानत है जग में, यति गोरक्षनाथ है नाम तुमारो ॥ 9 ॥
दोहा- नव नाथों में नाथ हैं, आदिनाथ अवतार।
जति गुरु गोरक्षनाथ जो, पूरण ब्रह्म करतार ॥
संकट-मोचन नाथ का, सुमरे चित्त विचार ।
जति गुरु गोरक्षनाथ जी, मेरा करो निस्तार ॥