शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते शेष महेश ।
सरस्वती पूजन करे वन्दन करे गणेश ।। 1 ।।
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो मन दिन रात ।
अवागमन को मेट के मनवांछित फल पात ॥ 2 ॥
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शिव गोरक्ष शुभनाम से हुए हैं सिद्ध सुजान ।
नाम प्रभाव से मिट गया लोभ क्रोध अभिमान ॥3॥
शिव गोरक्ष शुभनाम से हो जाओ भव पार ।
कलिकाल में है बड़ा सुन्दर खेवन हार ॥ 4 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जिसने लिया चित्तलाय
अष्टसिद्धि नवनिधि मिली अन्त में अमर कहाय ॥ 5 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति अपरम्पार ।
लेते ही मिट जात है अन्तर के अन्धकार ॥16 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे जो निशदिन जिव ।
नश्वर यह तन छोड़ के जीव बनेगा शिव ॥ 7 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रटले अघाये ।
काहे को चंचल भया जैसे पशु हराय ॥ 8 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में निशदिन कर तू वास ।
अशुभ कर्म सब छूटि है सत्य का होगा भास ॥ 9 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अगाध ।
लेने से ही तर गये नीच कोटि के व्याध ॥ 10 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को जो धरे अन्तर बीच।
सबसे ऊँचा होत है भले होय वह नीच 11
शिव गोरक्ष शुभनाम में करे जो नर अति प्रेम ।
उसको नहीं करना पड़े पूजा व्रत जप नेम 12
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो बारम्बार ।
सहजहि में हो जायेंगे भव सिन्धु के पार ॥ 13 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम से सीख लेव अद्वैत ।
मेरा तेरा छोड़ दो तजो सकल ये द्वैत ॥ 14 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटना आठों याम ।
आखिर में यह आयगी मूड़ी तुमको काम ॥15 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अथाह ।
रटने वालों को मिला भव सिन्धु का थाह 16 ।।
शिव गोरक्ष शुभनाम को पहिचाना जयदेव |
यह दुस्सह संसार से तर गये वो तत खेव ॥17
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना रट तू हमेश।
वृथा नहीं बकवाद कर पल-पल कहे आदेश ॥ 18 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटले तू चित्तलाय ।
घोर कली से बचने का एक यही उपाय ॥ 19 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रात ।
झूठ प्रपंच को त्याग दे छोड़ जगत की बात ॥20 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना कर तू याद ।
काहे स्वार्थ में भूल के वृथा करत बकवाद ॥ 21 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रैन।
कबहू न खाली जान दे एक भी तेरा बैन ॥ 22 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को सुमिरे कोटि सन्त ।
श्री नाथ कृपा से हो गया जन्म मरण का अन्त ॥ 23 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल पावन गंग।
रटने से रहती सदा ऋद्धि-सिद्धि सब संग ॥24 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा पूनम चन्द ।
रटते हैं निशदिन उन्हें राम कृष्ण गोविन्द || 25 |
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा गङ्गा नीर ।
रट के उतरे कोटिजन भव सागर के तीर ॥ 26 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में जो जन करते आस ।
निश्चय वो तो जात हैं अलष पुरुष के पास 127 |
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सुन्दर आम ।
रटने से ही हो गया अमर जगत में नाम ॥28॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में जैसे दीप प्रकाश ।
नित रटने से होत है अलष पुरुष का भास ॥ 29 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है उदधि तरन को जहाज ।
रटने से हो गये हैं अमर भरथरी राज ॥ 30 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सूर्य किरन ।
रटले जीव तू प्रेम से चाहे जो सिन्धु तरन ॥31॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल और विशुद्ध ।
रटने से शुद्ध होत है होय जो जीव अशुद्ध ॥32॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधा रस बिन्द ।
पीने से हो गये हैं अजर अमर गोपीचन्द ॥33॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे अनेकों राज ।
जरा मरण का भय मिटा सुधरे सबके काज ॥34॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटा है पूरण मल ।
आधि व्याधि मिट गई जन्म मरण गया टल ॥35॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते चतुर सुजान ।
अन्तर तिमिर विनाश हो उपजत है शुद्ध ज्ञान ॥36 ||
शिव गोरक्ष शुभनाम है सुन्दर उज्वल भान ।
रटने वालों को कभी होवे नहीं कुछ हान ॥37॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को पारस पत्थर जान ।
जीव रूपी इस लोह को करते स्वर्ण समान ॥38॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को जानो सुर तरु वर ।
रटने से मिल जात है जीव को इच्छित वर ॥39॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते कोटिक सन्त ।
नाम प्रताप से कट गया चौरासी का फन्द ॥ 40 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम का बहुत बड़ा है पर्व ।
जिसको हैं रटते सदा सुर नर मुनि गन्धर्व ॥ 41 |
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते श्री हनुमान ।
भक्तों में हुए अग्रगण्य देवों में मिला मान ॥ 42 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो जीव अज्ञान ।
नाथ प्रताप से होत है निश्चय चतुर सुजान ॥ 43 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे निर्मल जल ।
प्रेम लगा रटते रहो क्षण-क्षण और पल ॥ 44 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है कलि तारण हार ।
रटने वालों के लिये खुला है मोक्ष का द्वार 45
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा स्वच्छ आकाश ।
रटने वालों को बना लेते हैं निज दास ॥ 46 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अग्नि आपो आप ।
रटने वालों के सभी जल जाते हैं पाप ॥ 47 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधारस बिन्दु |
पीने से तर जात हैं सहज ही में भव सिन्धु ॥ 48 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम की महिमा अपरम्पार ।
कृपा सिन्धु की बिन्दु हो करदे भव से पार ॥ 49 ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को बन्दन करुँ हजार ।
कृपा करो त्रिलोक पर करदो भव से पार ॥50॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को प्रेम सहित आदेश ।
ऐसी कृपा करो प्रभु रहे नहीं कुछ शेष ॥51॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को कोटि करूँ आदेश ।
करके कृपा मिटाईए जन्म मरण का क्लेश ॥52॥