आदिनाथ महेश आकाश रूप छाय रहे,
उदयनाथ पार्वती पृथ्वी रूप भाये हैं।
सत्यनाथ ब्रह्मा जी जिनका है जल रूप,
उन्हीं ने तो कृपा कर सृष्टि को रचाये हैं।
सन्तोषनाथ विष्णु तेज खाण्डा खड़ग रूप,
राजपाट अधिकारी वही तो कहाये हैं ।
अचल अचम्भेनाथ जिनका है शेष रूप,
पृथ्वी का भार सब शीश पर उठाये हैं।
गजबेली गजकंथड़नाथ ऋद्धि सिद्धि देनहार,
हस्ति रूप धार गणपति कहलाये हैं ।
ज्ञानपारखी चन्द्रमा सिद्ध हैं चौरंगीनाथ,
अठारह भार वनस्पति में वोही समाये हैं।
मायापति दादा गुरु कृपालु मत्स्येन्द्रनाथ,
सब ही का अन्न धन कपड़ा पुराये हैं।
गुरु तो गोरक्षनाथ स्वयं ज्योति स्वरूप जो,
विश्वम्भर योगशक्ति उदार फैलाये हैं।
बड़े हैं वे भाग्यवन्त जिन योग प्राप्त किया,
नवनाथ नवनाथ गुरु गुण गाये हैं।
नाथ ये त्रिलोक नवनाथ को नमन करे,
नवनाथ नाम शुभ मेरे मन भाये हैं।
दोहा:- श्री नवनाथ को बिनऊं, दीजिये शुभ आशीष ।
आप ही मम सर्वस्व है, आप ही हैं मम ईश ॥
करें कृपा मुझ दीन पर, करूं सुयश गुणगान।
नवनाथ माला शुभ रचूं, कीजिये बुद्धि प्रदान ।।
जिसके पठन श्रवण से, मिटै त्रिविध भवताप ।
अचल मोक्षपद पावही, जपि हैं जो नित आप ।।