कहता हूं कहे जात हूँ कहूँ बजावत ढोल ।
इक इक सासां जात है त्रिलोकी का मोल ।।
आषाढ़ अगम की गम राखो दम राखी साधि के ।
चांद सूर्य स्वर एक लावो मूल राखो साधि के
श्रावण सोहं जाप जपले ॐ सोहं आप है ।
नाभि नासिका बीच देखो सोई अजपा-जाप है ।
भादो भृकुटि खोज प्यारे त्रिकुटी के संग से।
प्राण पुरुष आनन्द कहिये संत रचे हरी रंग से ।।
आसोज करता प्यारे ब्रह्म का दीदार है ।
उल्टे चश्में फेर देखो सोई वसता पार है ।।
कार्तिक काया खोज प्यारे सुरति राखो अर्थ पै ।
चू की बाजी फेर खेलो जैसे नटुवा भत पै ।।
मार्ग शीर्ष सेती हेत राखो सुरत राखो शून्य में।
बिना ताल मृदंग बाजे चित्त राखो धुन में ।।
पोष पवना उल्ट देखों नाद की झनकार है।
तासे झीनी अवाज लखिये लगे हंसा सार है ।
माघ मन में बान्ध राखो मकड तार से नेहरा ।
तासे झीनी ज्योत जगे है अलख सोहं सेहरा ।।
फाल्गुन भगुवा खेलो गगन में अनहद बाजे वहाँ बजे ।
राच रहे हंसा उस देश याही के साजे वहाँ सजे ॥
चैत चेतन रूप तेरा और दूजा है नहीं ।
काम क्रोध मद लोभ माया वहाँ पर है नहीं ।
बैशाख बरसे अभी जल धारा बिन बादल इक दामनी ।
भीजेगा कोई योगी विरला बिन श्रावण इक तीज है।
जेठ मरण जन्म कटै उस घर हंसा जाइये ।
कहत गोरक्ष नाथ विरला हरीजन पाइये ।।